Wednesday, October 4, 2017

सड़क दुर्घटना और बढ़ता "कैमरावाद"

                     सड़क दुर्घटना और बढ़ता कैमरावाद
                                                                  


देश की राजधानी में हाल ही में एक घटना सामने आई जिसके बारे में दैनिक अखबार में पढने को मिला, खबर मानवता को शर्मसार करने वाली थी कि किस तरह से आधुनिकता और स्मार्टफोन आदि मानवता तथा इंसानियत पर भारी पड़ते जा रहें है |

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बुराड़ी बाहरी दिल्ली का एक विधानसभा क्षेत्र हैं, वहां सडक पर एक व्यक्ति तेज गति से आ रही कार की चपेट में आ जाता है और दुर्घटना का शिकार हो जाता है, वह सडक पर मदद के इंतज़ार में पड़ा रहता है, टक्कर काफी तेज थी और तत्काल अस्पताल लेकर जाना आवश्यक था परन्तु आसपास में लोग एकत्र तो हो जाते है लेकिन केवल एक कार्य करने लगते है – अपने फोन में उस घायल व्यक्ति का विडिओ बनाने लगते है जबकि वह शख्स उसी बेसुध घायल हालत में सडक पर पड़ा रहता है, फिर कोई सज्जन आते हैं तता उसे अस्पताल पहुंचाते है किन्तु तब तक काफी देर हो चुकी थी, काफी खून बह चूका था, जिसके कारण वह आदमी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | 

ये घटना अपने आप में पहली नही थी जब ऐसा हुआ हो लेकिन ये शायद आखिरी हो इसकी हमे कामना करनी चाहिए क्योंकि ये घटना मानवता पर दाग है एक कभी ना मिटने वाला धब्बा है |

एक व्यक्ति का जीवन मृत्यु के समीप हो और सब जानते हुए भी लोग कैमरे के शेर बन जाएँ तो इसका आगामी परिणाम सम्पूर्ण मानवता तथा समाज के लिए भयावह होने वाला है |

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हमे समझना चाहिए कि हम एक स्मार्टफोन के जंजाल में फंसते जा रहें है वस्तुतः हमारी शुभ प्रातः से लेकर शुभ रात्रि इसी में होती है लेकिन इसके जंजाल में हम मानवता का स्तर न्यून करने की दिशा में अग्रसर हैं | दुसरे शब्दों में कहें तो यह एक तरह का ‘’कैमरा-वाद’ या ‘’सेल्फिवाद’’ है जोकि हमारे मन, दिमाग तथा जीवन में तेजी से बढ़ता जा रहा है, चाहे बच्चें हो या बड़े कोई इसके जंजाल से बचे नही है | जरा सोचिये कि आप एक ऐसे समय फोटो/विडिओ में लगें हैं जिस समय सामने पड़े व्यक्ति को आपकी सबसे ज्यादा जरूरत है जबकि उस दौरान इंसानियत से आपको उसकी मदद के लिए आगे आना चाहिए, उसे तत्काल प्रभाव से अस्पताल पहुँचाना चाहिए |

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वास्तव में होता क्या है कि आप अपनी आँखों से देखना बंद कर देते है तथा अपने उसी जंजाल रुपी स्मार्टफोन की आँख यानी कैमरा से देखना शुरू कर देते है और खुद की जिम्मेदारी उसी निर्जीव यंत्र को देकर खुद निर्जीव बन जाते है |

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यकीन मानिए आपने अपनी तुलना उस स्मार्टफोन की कीमत से जाने-अनजाने में कर ही दी है, वरना आप उस विडिओ को बनाकर क्या करेंगे ?? कौन ऐसे विडिओ देखने का शोक रखता है ?? कौन आपसे ये विडिओ मांगता है ?? क्या आप उस विडिओ को बिना संकोच किया दिखा सकेंगे ?? क्या आपके भीतर का मानव आपको यह नही कहेगा की मदद की बजाय विडिओ बनाकर क्या साबित करना चाहते हो ???

ये सभी प्रश्न उनके लिए विशेष है जो ऐसे मौकों पर स्वयं की आँखे बंद कर के “कैमरावादी” बन जाते हैं और मानव और मानवता विरोधी श्रृंखला में जुड़ जाते है | यदि आज ये लोग इसी तरह विडिओ कुप्रथा को प्रचलित करेंगे तो वह दिन भी दूर नही जब ये सडक पर मदद के लिए पड़े होंगे और इनका विडिओ बन रहा होगा |
अतः हमे मानवता और स्मार्टफोन के बीच अंतर को स्पष्ट करना होगा तथा इंसानियत को “कैमरावाद” से उपर दोबारा लाना होगा, स्मार्टफोन के उपयोग को जरूरत के अनुसार सीमित करना होगा और अपने भीतर ले संवेदनशील इंसान को जिन्दा रखना होगा ताकि इंसानियत वर्तमान और भविष्य दोनों में सजग और सुरक्षित रहे |
  
--सडक दुर्घटना में घायलों की समय से मदद करें,आपकी पहल किसी का परिवार बचा सकती है-–
                                  **समाप्त**

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 - अजय कुमार
  छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय
  सूचना का अधिकार
  तथा सामाजिक कार्यकर्ता 

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