उम्मीदों से भरे एक आंदोलनकारी नेता को अंत की तरफ बढ़ते देखना दुखद है! -
मैं केजरीवाल के पक्ष में खड़ा होना चाहता हूं. ये जानते हुए भी इस वक्त ऐसी बात मुंह से निकालना गालियों की बौछार को न्योता देना है. ये जानते हुए भी कि ये एक बहुत कमजोर और लगभग हारा हुआ मुकदमा है.मैं केजरीवाल के पक्ष में इसलिए खड़ा होना चाहता हूं क्योंकि मैं उन्हें उसी भीड़तंत्र की भेंट चढ़ता हुआ देख रहा हूं, जिस भीड़तंत्र ने उन्हें बनाया था. भीड़ बहुत ताकतवर चीज है. भीड़ किसी राह चलते आदमी को महात्मा बना सकती है और किसी बेकसूर की जान भी ले सकती है. भीड़ चुटकियों में सब कुछ तय कर लेती है. भीड़ से एक आवाज उठती है- ईमानदारी का बोलबाला है और पूरा देश मान लेता है कि ईमानदारी का युग आ गया. भीड़ से आवाज उठती है बेईमान का मुंह काला और पूरा देश मान लेता है कि कल तक जो ईमानदार था अब वह परले दर्जे का बेईमान है. भीड़ फौरन कंबल और डंडा ढूंढने लगती है. इसी तरह चलता है हमारा महान लोकतंत्र.
लहरों की सवारी :-
केजरीवाल के उत्थान और पतन की कहानी लहरों की सवारी की कहानी है. कुछ साल पहले भारत में ईमानदारी की एक लहर उठी और देखते-देखते मास हिस्टीरिया यानी सामूहिक उन्माद में बदल गई.पूरे घर को बदल डालूंगा वाले अंदाज में देश ने मान लिया कि हम जिस व्यवस्था में रहते हैं वह बने रहने लायक नहीं है. कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सबकुछ पूरी तरह भ्रष्ट है. देखा जाये तो यह बात पूरी तरह सही नहीं है लेकिन बहुत हद तक सच है.
लेकिन इस सच तक हमारी महान जनता किस आधार पर पहुंची? क्या वह कोई सामूहिक विवेक था जो देश की हालत को देखते और समझते हुए धीरे-धीरे विकसित हुआ था. अगर ऐसा हुआ होता तो देश सचमुच बदल जाता. लेकिन वह महज एक लहर थी, ठीक वैसी ही लहर जिस तरह नये फैशन की कोई लहर उठती है. या फिर भारत पर वर्ल्ड कप क्रिकेट जीतने का जो बुखार चढ़ता है. जिस तरह पब्लिक कहती है, 'सोनम गुप्ता बेवफा है' उसी तरह पूरे देश ने कहना शुरू कर दिया- पॉलिटकल सिस्टम सड़ा हुआ है और देश की संसद डाकुओं का अड्डा है.
बीजेपी के लिए केजरीवाल का डर उसी वक्त था जब तक भीड़ की ताकत उनके साथ नजर आ रही थी. मास हिस्टीरिया एक बार फिर उभर रहा है लेकिन अलग ढंग से. जिस तरह केजरीवाल ईमानदारी के सबसे बड़े मसीहा माने गये थे उसी तरह उन्हें बिना किसी ठोस तथ्य के भ्रष्ट करार दिया जा रहा है. जिस भीड़ ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया था वही भीड़ अब उन्हें पांवों तले रौंदने को तैयार है. जाहिर है बीजेपी के लिए अपने दुश्मन की राजनीतिक हत्या का इससे बेहतर कोई और मौका नहीं होगा. आम आदमी पार्टी के आधे से ज्यादा विधायकों पर मुकदमे हैं. बहुत से असंतुष्ट हैं. ब्लैकमेलिंग और सौदेबाजी की खबरें भी आम हैं. ऐसे में ताज्जुब नहीं होगा कि अगर आनेवाले महीनो में आम आदमी पार्टी की सरकार गिर जाये.
नैतिकता के साथ चालूपने की मिलावट नहीं चल सकती और कम बेईमान आदमी ज्यादा बेईमान आदमी से ईमानदारी की जंग नहीं जीत सकता.
ये बातें अगर केजरीवाल समझने को तैयार हों और देश को समझाने के लिए संघर्ष करने को तैयार हों तो मुझे गालियां खाकर भी उनके पक्ष में खड़े रहने से गुरेज नहीं होगा.
http://hindi.firstpost.com/politics/the-eclipse-of-arvind-kejriwal-as-a-leader-is-a-sad-chapter-of-indian-politics-sa-28386.html
No comments:
Post a Comment