आसमान डराता है बिजलियाँ चमकाकर हम भी डरा देते हैं अपने दाँत चमकाकर !
नहीं हुआ जी शायर कमाल का तो क्या ज़माना जानता है बंदा लिखा करता था !
तुम्हारी पुलिस है, तुम्हारे सारे जज भी हैं ,
इशारे पर तेरे दोनों प्याज़ लेकर हाज़िर हैं मुल्क में बिक गया है विधि का विधान भी ,
देखो बचा भी है क्या हमारा संविधान जी जज साहब ज़रा दिल पर हाथ रख लो,
गीता छोड़ो संविधान की क़सम कह दो।
अदालतों से पूछने का वक्त आ रहा है ,
तराज़ू पर कुछ सवाल रखने हैं अभी क्या यह सही है कि जज भी डर गए हैं ,
ऐसा है तो चलो जेल में मुल्क बसाते हैं
हम कफ़स की दीवारों पर लिक्खेंगे
हम कफ़न की चादरों पर लिक्खेंगे पूछेंगे वतन की इन हवाओं से रोज़,
तुमने भी देखा क्या बादशाह डरपोक
-Ravish Kumar NDTV
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